Description
योगिराज के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए हम उनके साथ हिमालय की यात्रा पर निकल पड़ते हैं जहाँ प्राचीन मंदिरों और बर्फीले पहाड़ों की गुप्त गुफाओं में छुपे हुए रहस्यमय शक्ति केंद्रों से हमारा वास्ता होता है, जिनमें से कुछ तो प्रागैतिहासिक काल की रात्रि से उदभूत हुए हैं। जानिये आध्यात्मिक इतिहास की सबसे गुह्य पहेली, अस्तित्वविहीन परमअस्तित्व, “बाबाजी” के साथ उनकी भेंट का विवरण। बाबाजी के साकार और निराकार स्वरुप में सिद्धनाथ खो गए, “……उनके शरीर की अमत्र्य गंध ने मेरा उनके अमरत्व से परिचय कराया, ऐसे भव्य थे वे, सम्राटों के सम्राट!”
शिव गोरक्ष बाबाजी समस्त युग युगान्तरों की मनुष्यताओं के ज्ञानरूपी शीश, सुगन्धित हृदय और अमर आत्मा हैं। वे महान बलिदान हैं जिनके ऊपर सभ्यताओं, राष्ट्रों और संसारों ने जन्म लिया, स्थिर रहे और उन्हीं में विलीन हो गए। शाम्भला में प्रकट हुए शिव गोरक्ष बाबाजी स्वयं त्रिमूर्ति रूप में सिंहासन पर आरूढ़ हैं, उनके पीछे हैं उनके महावतार नारायण और उसके बाद उनके पूर्णावतार कृष्ण। वे समस्त देवों और मनुष्यों के लिए सदा प्रकट अप्रकट होने वाले मोक्ष के प्रकाशमान तारा स्वरुप हैं। वे हैं अकम्पित विराट वज्र जो स्वयं को एक तारे में रूपांतरित कर देते हैं जब भी कोई आत्मा निर्वाण मोक्ष को प्राप्त करती है।
दिव्य समाधि का अनुभव कर सिद्धनाथ पुकार उठे, “हे नाथ!, ब्रह्माण्ड मेरी चेतना में पानी का एक बुलबुला है! और मेरी चेतना शून्य है आपकी परमशून्यता में!”
लेखक के द्वारा साहित्य जगत में पहली बार इस अदभुत सत्ता के सभी आयामों का बड़ी गहराई के साथ खुलासा किया गया है, यह सत्ता शिव गोरक्ष बाबाजी हैं जिनके साथ हुए गहन व्यक्तिगत अनुभव से रचनाकार का रूपांतरण और परम जागरण हुआ।
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