Description
“वह भीतर ही विराजमान है, अपनी कृपा को बाहर उड़ेलता हुआ। घोर संकट में वह बचाने आता है, चाहे उसे बुलाया गया हो या न बुलाया गया हो। वह हमारा सबसे अंतरंग तत्व है, हमारा आत्म-स्वरूप है वह।”
– श्री रमण स्तोत्र, अंक 58
भगवान शिव के पवित्र पर्वत अरुणाचल के प्रबुद्ध संत श्री रमण महर्षि अपने समय के विश्व के सबसे अधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। आत्मबोध के लिए जो सरल रास्ता उन्होंने बताया था, ‘आत्म-विचार’ की उनकी अनोखी विधि और हम सब के आध्यात्मिक हृदय में निवास करने वाले आंतरिक सतगुरु के समक्ष अपने अहंकारी मन का संपूर्ण समर्पण।
जो कुछ वह कहते थे उसे वह प्रत्यक्ष आत्मज्ञान की पूरी विश्वसनीयता के साथ कहते थे। अपने भक्तों में अपनी उपस्थिति की शांत स्थिति द्वारा वह उनमें वह सत्-चित्-आनंद-प्रेम के वास्तविक स्वरूप का आवाहन कर सकते थे, और अब भी करते हैं। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेकों का आत्मबोधे कराया। तिरुवण्णामलै में स्थित उनका आश्रम उनकी कृपा और उनकी शिक्षाओं का ज्ञान प्रदान करने वाला जीवंत आध्यात्मिक केंद्र है। उनका यह संक्षिप्त जीवनचरित आपको उनके दिव्य जीवन और उनकी शिक्षाओं के सार-संक्षेप से परिचित कराता है।
लेखक ऐलन जेकब्स अपनी अनेक पुस्तकों के लिए विख्यात हैं, जैसे पोइटिक ट्रांसक्रिएशंस ऑफ़ भगवदगीता और द प्रिंसिपल उपनिषद्स आदि। रमणाश्रमम से प्रकाशित होने वाली आध्यात्मिक पत्रिका माउंटेन पाथ में भी इनका योगदान रहता है। रमण महर्षि फ़ाउंडेशन, यूके के वह अध्यक्ष हैं।
Reviews
There are no reviews yet.